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Ques.: Generally beggars surround the devotees and request for alms when they come out of the worship places. What can be done for this ?

Ans.: After worshipping in the temples, give alms to the beggars. This will definitely reduce your bad karmas. Distribution of food to the hungry people is the best kind of charity.

 

Ques.: Which is better – worshipping in the house itself or worshipping in the temples ?

Ans.: It is good to worship God in the house itself. Still better is the worship in the temple and helping the temple-authorities to conduct pujaa etc. The best way of worship is doing physical service for social causes.

 

Ques.: For what purpose did Adi Shankaracharya  compose the “Kanakdhara stotra” ? What are the effects of reciting this stotra?

Ans.:  A poor lady donated a goose-berry which was the only thing left in her household when Adi Shankar came for alms to her house. On coming to know about her noble act, Adi Shankar prayed to Goddess Mahalakshmi to bestow wealth to the poor lady. Then, suddenly, there showered a rain of golden goose-berries to wipe out the poverty of that house. Kanakdhara Stotra was composed by Adi Shankracharya then. By reciting it with ardent devotion, prosperity is assured.

 

Ques.:  It was told by experts that a man will dream when he is in a subconscious state.  Upnishad say that we will see sometimes places and persons of previous births in our dreams. Are these dreams obstructions for spiritual progress? Is there any interpretation in Puranas and Vedas ?

Ans.:  Upnishads, except for a passing reference, do not say anything categorically about dreams. There is a reference in Vedas speaking of the similarity of life with dreams. Both are ephemeral phenomena. Chant the following shlok before going to bed to avoid bad dreams –

अच्युतं केशवं विष्णुम हरिं सोमं जनार्दनम।

हंसम नारायनम कृष्णम जपेद दुःस्वप्नशान्तये।।

(Let us pray to Narayana who is known as Achyuta, Keshav, Vishnu, Hari, Soma, Janardan, Hansa and Krishna, in order to avoid bad dreams.)

 

Ques.:  Some temples in South India don’t allow men to wear shirts inside the temple premises. This custom is very common in the temples of Kerala. What is the reason?

Ans.:  India is a country with rich traditional and cultural heritage. From olden days, as a mark of respect, men used to remove the shirts or shawls and tie them in their hips when they meet elders or royal personalities. This has become custom while visiting all the temples, thereby showing great respect and devotion to the God.


कर्मविपाक - पूर्वजन्म के कर्मों का फल

कर्मविपाक

कर्मविपाक - पूर्वजन्म के कर्मों का फल

जो मनुष्य लोभ से देवता या ब्राह्मण का धन हरण करता है वह पापी दूसरे जन्म  में जूठन खाकर जीता है।

कोई-कोई दुष्टात्मा मनुष्य इस जन्म के पाप से और कोई-कोई पहिले जन्म के दोष से कुनखी आदि विपरीत रूपवाले होते हैं। सोना चोरानेवाले के कुत्सित नख और सूरा पीने वाले के काले दाँत होते हैं। ब्रह्मघाती का क्षयी रोग और गुरुपत्नी से गमन करने वाले का कुत्सित चाम होता है।

चुगुल के नाक से और पर का मिथ्या दोष कहने वाले के मुख से दुर्गंध आता है। धान्य चोराने वाला  अंगहीन होता है और धान्य में दूसरी वस्तु मिलाने वाले का अधिक अंग होता है।

अन्न चोराने वाले के उदर की आग मंद हो जाती है, वचन चोराने वाला अर्थात दूसरे के पाठ को सुनकर पढ़ने वाला, गूंगा होता है, वस्त्र चोरानेवाला श्वेतकुष्ठी होता है, घोड़ा चोरानेवाला लंगड़ा होता है।

दीप चोरानेवाला अंधा, दीप बुझाने वाला काना, जीव हिंसा करानेवाला अनेक रोग से युक्त होता है और परस्त्री से गमन करने वाला वातरोग से स्थूल शरीरयुक्त होता है।

अन्याय से पराया धन लेने की चिन्ता करना, मन से अनिष्ट चिंता करना और परलोक को मिथ्या जानना; यह तीन प्रकार के मानसिक कर्म हैं। कठोर वचन कहना, झूठ बोलना, परोक्ष में दूसरे लोगों को दोषी कहना और बिना प्रयोजन सब लोगों की बातें बकते फिरना, यह चार प्रकार के वाचिक कर्म हैं।

अन्य का धन हरण करना, अवैध हिंसा करना और पर की स्त्री से सहवास करना; यह तीन प्रकार के शारीरिक कर्म हैं। मनुष्य मानसिक शुभाशुभ कर्म को मन से, वाचिक कर्म को वचन से और शारीरिक शुभाशुभ कर्म को शरीर से भोगता है। शरीर से पाप करने वाला मनुष्य स्थावर होता है, वचन से पाप करने वाला पक्षी तथा पशुयोनि में जन्म लेता है और मन से पाप करने वाला मनुष्य चाण्डाल के घर जन्म लेता है।

इंद्रियों के विषयों में प्रसक्त होने से और प्रायश्चित आदि धर्म नहीं करने से अधम मनुष्य कुत्सित गति प्राप्त करता है।

 

जीव जिस-जिस कर्म से इस लोक में क्रमानुसार जिन योनियों में प्राप्त होते हैं वह सब इस प्रकार हैं

महापातकी लोग यदि प्रायश्चित नहीं करें तो कुत्ता, सुअर, गधा, ऊंट, गौ, बकरा, भेड़, मृग, पक्षी, चांडाल और पुक्कस होकर जन्म लेते हैं। सुरा पीने वाला ब्राह्मण कृमि, किट, पतङ्ग, विष्ठा खाने वाले पक्षी और बाघ आदि हिंसक पशु होते हैं। सोना चोरानेवाला ब्राह्मण मकड़ी, सांप, गिरगिट, मगर आदि जंतु और हिंसा करने वाले पिशाच आदि की योनि में हज़ार बार जन्म लेते हैं। गुरु की स्त्री से गमन करने वाले तृण, गुल्म, लता, कच्चे मांस खाने  ( गिद्ध आदि ) जीव, दांत से काटने वाले ( हिंसक आदि ) जीव, क्रूर कर्म करने वाले ( व्याघ्र आदि ) की योनि में सौ बार जन्म लेते हैं।

प्राणियों का वध करने वाले, कच्चे मांस भक्षण करने वाले जंतु होकर जन्मते हैं। अभक्ष्य वस्तु खाने वाले कीड़े होते हैं; चोर लोग परस्पर मांस खाने वाले होकर जन्मते हैं और अन्त्यज जाति की स्त्रियों से गमन करने वाले प्रेत होते हैं।  पतित के संसर्ग में रहने वालेपर की स्त्री से गमन करने वाले  और ब्राह्मण का धन हरण करने वाले मरने पर ब्रह्मराक्षस होते हैं।

लोभवश होकर मणि, मोती, मूंगा और अनेक प्रकार के रत्न चोराने वाले मनुष्य सोनार होते हैं। धान्य चोराने वाला चूहा, कांस चोराने वाला हंस, जल चोराने वाला पनडुब्बी पक्षी, मधु चोराने वाला दंश, दूध चोराने वाला काक, रस चोराने वाला कुत्ता और घी चोराने वाला नेवला होता है।

मांस चोराने वाला गिद्ध, चर्बी चोराने वाला जलचर पक्षी, तेल चोराने वाला तैलपक पक्षी, नोन चोराने वाला झींगुर किट और दही को चोराने वाला बलाका पक्षी होता है। रेशमी वस्त्र चोराने वाला तीतर पक्षी, तीसी के छाल से बने हुए वस्त्र चोराने वाला मेढ़क, कपास के सूत से बने वस्त्र चोराने वाला क्रोंच पक्षी, गौ को चोराने वाला गोह और गुड़ चोराने वाला चमगादड़ होकर जन्मता है। सुगंधित वस्तुओं को चोराने वाला छूंछूंदर, पत्ते या शाक चोराने वाला मयूर, सत्तू भात आदि सिद्ध अन्न को चोराने वाला साहील होता है। आग चोराने वाला बगुलासूप, मूसल आदि गृह के उपयोगी चीज चोराने वाला दीमक कीड़ा और रंगे हुए वस्त्र को चोराने वाला चकोर होता है। हाथी चोराने वाला भेड़िया, घोड़ा चोराने वाला बाघ, फल मूल  चोराने वाला वानर, स्त्री को चोराने वाला भालू, जल चोराने वाला चातक, सवारी चोराने Oवाला ऊंट  और अन्य किसी पशु को चोराने वाला मरने पर बकरा होता है। किसी प्रकार से पर का द्रव्य बलपूर्वक हरण करने वाला तथा बिना आहुति दिए होम की वस्तु भोजन करने वाला मनुष्य अवश्य पशु पक्षी आदि तिर्यक योनि में जाता है। इच्छापूर्वक अन्य की वस्तु चोराने वाली स्त्रियां भी ऊपर कहे हुए जंतुओं की स्त्री होती हैं।

ब्राह्मण आदि चारों वर्णों के मनुष्य जब बिना आपातकाल के अपने वर्ण के कर्म को छोड़ देते हैं तब नीचे कही हुई पाप योनि में जन्म लेते हैं और फिर दूसरे जन्म में शत्रु के दास होते हैं। जो ब्राह्मण अपने कर्म को छोड़ता है वह उवान्त भक्षण करने वाला ज्वालामुख नामक प्रेत होता है। जो क्षत्रिय अपने कर्म को छोड़ता है वह विष्ठा आदि अपवित्र वस्तु को भक्षण करने वाला  कठपुतन नामक प्रेत होता है और जो वैश्य अपने कर्म से भ्रष्ट होता है वह पिव खाने वाला मैत्राक्ष ज्योतिक नामक प्रेत होता है और जो शुद्र अपने कर्म को त्यागता है वह चैलाशक प्रेत होता है।

विषयी लोग जैसे जैसे विषय की  सेवा करते हैं तैसे तैसे विषय में प्रवीण होते हैं। पाप कर्मों के बारम्बार करने से अल्प बुद्धि लोगों को इस लोक में क्लेश होता है और मरने पर तिर्यक आदि योनियों में दुख सहना पड़ता है; तामिस्र आदि घोर नरकों में, असिपत्र वन में आदि तथा बंधन च्छेदन करने वाले नरकों में यंत्रणा भोगना पड़ता है। नाना प्रकार की पीड़ा भोगना, काक और उलुकों क द्वारा भक्षित होना, तपाये हुए बालू आदि के ऊपर चलना और कुम्भीपाक आदि अत्यंत भयानक नरक यंत्रणा भोगना पड़ता है।

आत्मज्ञानी अर्थात विद्या, धन आदि के गर्व से रहित, शौचवान अर्थात भीतर और बाहर की शुद्धि से युक्त, शांतचित, तपस्वी, जितेंद्रियधर्म में तत्पर और वेद के अर्थ का ज्ञाता; यह सब सात्विक वृत्ति वाले मनुष्य मरने पर देवयोनियों में उत्पन्न होते हैं। असत्कार्य में रत रहनेवाला, अधीर, कार्यों के आरंभ करने में सदा व्याकुल रहने वाला और विषयों में आसक्त यह सब रजोगुणी मनुष्य मरने पर मनुष्य की योनियों में जन्म लेते हैं।