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ज्योतिष का रहस्य 06-03-2022
ज्योतिषशास्त्र का अन्य नाम ज्योति:शास्त्र भी है, जिसका अर्थ प्रकाश देने वाला या प्रकाश के संबंध में बतलाने वाला शास्त्र होता है; अर्थात जिस शास्त्र से संसार का मर्म, जीवन-मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दुख के संबंध में पूर्ण प्रकाश मिले वह ज्योतिष शास्त्र है।
छान्दोग्य उपनिषद में ब्रह्म का वर्णन करते हुए बताया है कि, “ मनुष्य का वर्तमान जीवन उसके पूर्व-संकल्पों और कामनाओं का परिणाम है तथा इस जीवन में वह जैसा संकल्प करता है, वैसा ही यहां से जाने पर बन जाता है। अतएव पूर्ण प्राणमय, मनोमय, प्रकाशरूप एवम समस्त कामनाओं और विषयों के अधिष्ठानभूत ब्रह्म का ध्यान करना चाहिए।“ इससे स्पष्ट है कि ज्योतिष के तत्वों के आधार पर वर्तमान जीवन का निर्माण कर प्रकाशरूप – ज्योति:स्वरूप ब्रह्म का सानिध्य प्राप्त किया जा सकता है।
स्मरण रखने की बात है कि मानव जीवन नियमित सरल रेखा की गति से नहीं चलता, बल्कि इस पर विश्वजनीन कार्यकलापों के घात-प्रतिघात लगा करते हैं। सरल रेखा की गति से गणना करने पर जीवन की विशेषता भी चली जायेगी; क्योंकि जब तक जगत के व्यापारों का प्रवाह जीवन-रेखा को धक्का देकर आगे नहीं बढ़ाता अथवा पीछे लौटकर उसका ह्रास नहीं करता तब तक जीवन की दृढ़ता प्रकट नहीं हो सकती। तात्पर्य यह है कि सुख और दुख के भाव ही मानव को गतिशील बनाते हैं, इन भावों की उत्पत्ति बाह्य और आंतरिक जगत की संवेदनाओं से होती है।
आकाश में प्रतिक्षण अमृत रश्मि सौम्य ग्रह अपनी गति से जहाँ-जहाँ जाते हैं, उनकी किरणें भूमण्डल के उन-उन प्रदेशों पर पड़कर वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य, बुद्धि आदि पर अपना सौम्य प्रकाश डालती हैं। विषमय किरणों वाले क्रूर-ग्रह अपनी गति से जहाँ गमन करते हैं, वहाँ वे अपने दुष्प्रभाव से वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य और बुद्धि पर अपना बुरा प्रभाव डालते हैं। मिश्रित रश्मि ग्रहों के प्रभाव मिश्रित एवं गुणहीन रश्मियों के ग्रहों का प्रभाव अकिंचितकर होता है।
उत्पति के समय जिन-जिन रश्मि वाले ग्रहों की प्रधानता होती है, जातक का स्वभाव वैसा ही बन जाता है। प्रसिद्ध है –
एते ग्रहा बलिष्ठा: प्रसूतिकाले नृणां स्वमूर्तिसमम।
कुरयुरदेहं नियतं बहवश्च समागता मिश्रम।।
अतएव स्पष्ट है कि संसार की प्रत्येक वदतु आंदोलित अवस्था में रहती है और हर वस्तु पर ग्रहों का प्रभाव पड़ता रहता है।