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महाशिवरात्रि 2022
महाशिवरात्रि – फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी तिथि, दिन मंगलवार, 01 मार्च 2022
भगवान शिव का स्वरूप
भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। भगवान शिव को रुद्र नाम से भी जाना जाता है। रुद्र का अर्थ है – रुत दूर करनेवाला अर्थात दुःखों को हरने वाला।
भगवान शिव चाँदी के पर्वत के समान गौर हैं। मस्तक में चन्द्रकला शोभायमान है। भगवान के दोनों नेत्र पृथिवी और आकाश के सूचक हैं, तृतीय नेत्र बुद्धि के अधिदैव सूर्य अर्थात ज्ञान-अग्नि का सूचक है। इसी ज्ञानाग्नि रूप के खुलने से काम भस्म हो गया। मन का अधिदैव रूप चन्द्रमा भगवान के मस्तक पर विराज रहा है। इस प्रकार उनके ईश्वर भाव के द्वारा संसार का प्रकाश हो रहा है। इसी ईश्वर भाव को लिए हुए भगवान शंकर के हाथ में तीनों गुणों का सूचक त्रिशूल है।
प्राकृतिक प्रलयकारी रुद्र भाव में शिवजी
भस्म-अवलिप्त, श्मशानवासी, भुजंगधारी, कभी व्याघ्रचर्मधारी तो कभी कपर्दी, विषपायी और दमरुधारी हैं।
आपकी श्रीपार्वतीजी गृहिणी हैं, कुबेर भंडारी हैं। ऐसा होने पर भी आपका श्मशान का निवास, शरीर में भस्म का धारण करना, हाथ में भिक्षापात्र लेकर भिक्षा माँगना – यह सब आत्यंतिक प्रलय के साधनभूत त्याग-वैराग्य आदि को प्रकट करते हैं।
पृथिवी का उच्च प्रदेश हिमालयपर्वत ही आपका सिर है। वहीं से जगतपावनी श्रीगंगाजी का आविर्भाव होता है।
सत्वगुण का पूर्ण विकास होने पर ही धर्म का विकास होता है। पशु-जाति में सबसे अधिक धर्म का विकास गौ-जाति में है, इसीलिए धर्म का सूचक बैल (वृषभ) ही शिवजी का वाहन है।
अथर्ववेद के ग्यारहवें काण्ड के द्वितीय सुक्त में भी शिवजी के स्तवनरूप से उनके स्वरूप का वर्णन किया गया है।
नम: सायं नम: प्रातरनमो रात्रया नमो दिवा।
भवाय च शर्वाय चोभाभ्यामकरं नम: ।।
हे रुद्र ! आपको सायंकाल, प्रातःकाल रात्रि और दिन में भी नमस्कार है। मैं भवदेव तथा रुद्रदेव दोनों को नमस्कार करता हूँ।
शिव कवच
भगवान शिव की महिमा अनेक स्तोत्रों और स्तवनों में वर्णित है। इनमें महिम्नस्तोत्र बड़ा महत्वशाली है और दार्शनिक विचारों से परिपूर्ण है। परंतु सबसे उत्कृष्ट, तत्कालप्रफ और भाषा-गौरव-सम्पन्न स्तुति शिव-कवच है।
कवच क्या है – संस्कृत साहित्य में कवच-रचना एक अद्भुत बात है। इष्टदेव को प्रसन्न करना और उसे अपनी रक्षा के लिए उद्यत करना कवच-स्तोत्रों का मुख्य उद्देश्य है। मुख्य – मुख्य देवताओं के कवच-स्तोत्र मिलते हैं – जैसे, नारायण-कवच, देवी-कवच, शिव-कवच आदि। कवच का अर्थ है – जिरावख्तर । जैसे युद्ध में योद्धा जिरावख्तर पहनकर शत्रु के सब प्रहारों से सुरक्षित रहता है, वैसे ही मनुष्य इन कवच-स्तोत्रों के पढ़ने और उनके मंत्रों के जप-पाठ करने से अपने लिए सब संकट-प्रहारों से इष्टदेव की कृपा द्वारा सुरक्षित हो जाता है और जो विपत्ति में पड़ा हो उससे मुक्त हो जाता है।
कवच-साहित्य में शिव-कवच का उच्चतम स्थान है। यह कवच सभी कवचों में परम गुह्य है। सब पापों को दूर करता है। अत्यंत पवित्र है, जयप्रद है, सब विपत्तियों को दूर करनेवाला है।सब बाधाओं को शांत करने वाला है। परम हितकारी है। सभी प्रकार के भय दूर करता है। इसके प्रभाव से क्षीण-आयु मृत्यु-समीपस्थ , महानिरोगग्रस्त मनुष्य शीघ्र ही निरोगता और सुख प्राप्त करता है। दीर्घायु को प्राप्त करता है। उसका सब दारिद्रय दूर हो जाता है और उसके सौभाग्य-मंगल की वृद्धि होती है और वह महापातक से छूट जाता है। शिव-कवच सब कवचों का शिरोमणि है।