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राहु महादशा अंतर्दशा और ग्रहदोष निवारण

राहु महादशा अंतर्दशा और ग्रहदोष निवारण

राहु को आमतौर पर एक अशुभ ग्रह माना गया है। लेकिन अपवाद भी है। जातक की कुण्डली में केन्द्र (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव ) स्थित राहु पर यदि त्रिकोण भाव ( लग्न, पंचम, नवम ) के स्वामी की दृष्टि पड़ रही हो अथवा त्रिकोण भाव स्वामी के साथ युति हो या त्रिकोण भाव स्थित राहु पर केन्द्र भाव के स्वामी की दृष्टि हो अथवा केन्द्र भाव के स्वामी के साथ युति हो तब ऐसे में राहु ‘योगकारक ग्रह’ हो जाते हैं और दशा अंतर्दशा में जातक के लिए शुभफलदायी हो जाते हैं।

यहाँ अलग-अलग जातकों के लिए राहु के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में बतलाया जा रहा है

*राहु किसी भी राशि के स्वामी नहीं हैं। अतः यह जिस राशि या भाव में रहते हैं उसी अनुरूप जातक पर अपना प्रभाव डालते हैं।

*राहु जिस ग्रह के साथ होते हैं, उसके गुण-दोष को को ग्रहण कर लेते हैं। उदाहरण के लिए अगर सिंह लग्न की कुण्डली में बृहस्पति के साथ राहु स्थित हैं, तब ऐसे में बृहस्पति के अनुरूप ही राहु भी जातक पर अपना प्रभाव डालते हैं। यहाँ यह समझ लेना होगा कि राहु अगर शुभ ग्रह के साथ युति कर रहे हैं तब राहु की दशा शुभफलदायी हो जाएगी लेकिन जिस शुभग्रह के साथ स्थित हैं उसकी दशा कुछ कम प्रभावी हो जाएगी।

अगर राहु किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हैं, तब ऐसे में राहु और जिस अशुभ ग्रह के साथ स्थित हैं उसकी भी दशा अशुभ फलदायी हो जाएगी। लेकिन अगर कुण्डली में ‘विपरीत राजयोग’ बन रहा है तब दशा अशुभ फलदायी नहीं होगी। यह एक अपवाद है।

*जातक की कुण्डली में अगर राहु वृष, मिथुन, कन्या, तुला या कुम्भ राशि स्थित हैं, तब राहु शुभ फलदायी हो जाते हैं।

*राहु अगर उपाचय-स्थान अर्थात तृतीय भाव, षष्ठ भाव, दशम भाव, एकादश भाव स्थित हैं, तब यह शुभ फलदायी हो जाते हैं। लेकिन द्वितीय और अष्टम भाव स्थित राहु अशुभ फलदायी हो जाते हैं।

*कुण्डली में अगर द्वितीय, सप्तम या द्वादश भाव को लेकर ‘कालसर्प योग’ बन रहा है तब जातक को राहु दशा में विशेष सावधानी की आवश्यकता होगी।

*अगर राहु द्वितीय भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में किसी अशुभ ग्रह के साथ स्थित हैं या अशुभ ग्रह से दृष्ट हैं, तब राहु की महादशा-अंतर्दशा अशुभ फलदायी हो जाती है।


राहु दशा और ग्रहदोष निवारण

1.राहु ग्रहदोष के कुप्रभाव से बचने के लिए किसी शिव मंदिर में बैठकर भैरव-मंत्र का जप करना चाहिए।

2. जरूरतमंद लोगों के बीच राहु से संबंधित वस्तुओं (आईना, काला तिल, जौ, सरसों का तेल, कच्चा कोयला, इत्यादि) का दान करना चाहिए।

3. अगर कुण्डली में ‘कालसर्प योग’ बन रहा है तब जातक को रुद्रदेवता और भैरव की पूजा करनी चाहिए।

4. राहु महादशा-अंतर्दशा ग्रहदोष निवारण के लिए नीचे लिखित मंत्रों का जप करना बहुत लाभकारी हो सकता है

ॐ कालभैरवाय नमः

ॐ रुद्राय नमः

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे

ॐ हं हनुमते नमः

राहु महादशा में अन्य ग्रहों के अंतर्दशा का निवारण


राहु महादशा बृहस्पति अंतर्दशा

कुण्डली में अगर बृहस्पति अपनी नीच की राशि मकर में षष्ठ भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव स्थित हों और राहु भी साथ में हों या बृहस्पति पर राहु की दृष्टि पड़ रही हो, तब ऐसे में ग्रहदोष निवारण पर अवश्य ध्यान देना चाहिए

*भगवान शिव का घी और मधु से विधिवत अभिषेक करें।

*मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन लग्न वाले जातक को पीला पुखराज धारण करना चाहिए। शेष अन्य लग्न में जन्म लेने वाले जातकों को बृहस्पतिवार के दिन पीला वस्त्र, चना दाल अर्थात पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए।

*बृहस्पतिवार का व्रत करें।

*सत्यनारायण कथा का श्रवण करें।


राहु महादशा शनि अंतर्दशा --

लग्न कुण्डली से अगर शनि अपनी नीच की राशि मेष में अष्टम भाव, द्वादश भाव स्थित हों अथवा राहु से षष्ठ भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव स्थित हों अथवा पूर्ण अस्त हों अथवा अशुभ ग्रहों से दूषित हों, तब ग्रहदोष निवारण के रूप में

*काली वस्तुओं का दान करना चाहिए

*भैरव पूजन-जप करना चाहिए। चामुण्डा देवी की पूजा करनी चाहिए।

*शनिवार के दिन हनुमान चालीसा सुंदर काण्ड का पाठ करना चाहिए।

*जरूरतमंद लोगों को शनिवार के दिन भोजन करवाना चाहिए।

* काली गाय को शनिवार के दिन खल्ली-चोकर खिलाना चाहिए।

*निम्न मंत्र का जप करना चाहिए

ॐ हं हनुमते नमः

ॐ रुद्राय नमः

जयंती मंगला काली …. स्वधा नमोस्तुते

*वृष लग्न, मिथुन लग्न, तुला लग्न, मकर लग्न और कुम्भ लग्न में जन्म लेनेवाले जातक शनि ग्रह का रत्न उपरत्न धारण कर सकते हैं।


राहु महादशा बुध अंतर्दशा

कुण्डली में अपनी नीच राशि मीन स्थित बुध अगर जन्म लग्न अथवा राहु से षष्ठ भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव में हों, तब ऐसे में ग्रहदोष निवारण के रूप में जातक को

*विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।

*देवी दुर्गा और सरस्वती का पूजन करना चाहिए।

*निम्न मंत्रों का जप करना चाहिए

ॐ गं गणपतये नमः

ॐ नमो नारायणाय नमः

ॐ नम: चंडीकायै

*वृष, मिथुन, कन्या, तुला, कुम्भ लग्न में जन्म लेने वाले जातक पन्ना (Emerald) धारण कर सकते हैं।


राहु महादशा केतु अंतर्दशा

कुण्डली में जन्म लग्न से अगर केतु अष्टम भाव, द्वादश भाव स्थित हों अथवा षष्ठ भाव, अष्टम भाव, द्वादश भाव के स्वामी के साथ हो तब ग्रहदोष निवारण के रूप में जातक को

*बकरा दान करना चाहिए।

*भगवान गणेश, भैरव और देवी महाकाली की पूजा करनी चाहिए।


राहु महादशा शुक्र अंतर्दशा

सामान्यतया राहु महादशा शुक्र अंतर्दशा आर्थिक सम्पन्नता का कारक होती है। परंतु शुक्र का नीच राशि कन्या स्थित होना, शत्रु-स्थान स्थित होना, शत्रु ग्रह के साथ होना या शत्रु ग्रह से दृष्ट होना अथवा जन्म लग्न या राहु से षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव स्थित होना एक प्रकार का दोष हो जाता है, ऐसे में जातक को

*देवी महालक्ष्मी का पूजन करना चाहिए।

*भगवान गणेश के साथ भगवान शिव और देवी दुर्गा का भी पूजन करना चाहिए।

*दूसरे किसी को भी खीर खिलाना चाहिए।

*नित्य श्रीसूक्तम का पाठ करना चाहिए।

वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुम्भ लग्न में जन्म लेनेवाले जातक हीरा, सफ़ेद पुखराज, सफेद जरकन धारण कर सकते हैं।


राहु महादशा सूर्य अंतर्दशा

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और राहु एक-दूसरे के शत्रु माने गए हैं। अगर सूर्य जातक की कुण्डली में राहु से प्रथम, द्वितीय, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव स्थित हैं अथवा जन्म लग्न से द्वादश भाव स्थित हों अथवा शत्रु ग्रहों से दूषित हों तब ऐसे में जातक को --

*नित्य भगवान सूर्य के साथ भगवान शिव और विष्णु की भी पूजा करनी चाहिए।

*रविवार का व्रत करना चाहिए।

*गेंहूं, ताम्बा, लाल वस्त्र का दान करना चाहिए।

*विशेष दोष होने पर सूर्याष्टक मंत्र, सूर्य-शतकम, अरुणम का पाठ नित्य करना चाहिए।

*मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु लग्न में जन्म लेने वाले जातकों को माणिक्य (Ruby) धारण करना बहुत लाभकारी हो सकता है।


राहु महादशा चंद्रमा अंतर्दशा

अगर जातक की कुण्डली में चंद्रमा अपनी नीच की राशि वृश्चिक में राहु से प्रथम, द्वितीय, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भाव स्थित हैं अथवा जन्म लग्न से षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव स्थित हैं तब ऐसे में जातक को

*प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का विधिवत पूजन-अभिषेक करना चाहिए।

*पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए और रात्रि में चंद्र देवता को दूध-चावल-बतासा से अर्घ्य देना चाहिए।

*पवमान सुक्त का पाठ करना चाहिए।

*मेष, कर्क, वृश्चिक, मीन लग्न में जन्म लेने वाले जातक को चंद्रमा का रत्न मोती या मून स्टोन धारण करना चाहिए।


राहु महादशा मंगल अंतर्दशा

मंगल अंतर्दशा के बाद राहु की महादशा समाप्त हो जाएगी। राहु और मंगल एक-दूसरे के शत्रु समझे जाते हैं। अतः प्रायः इनकी दशा-अंतर्दशा अशुभ फलदायी ही होती है। मंगल अगर जातक की कुण्डली में राहु से षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव स्थित हैं या राहु के साथ हैं अथवा मंगल पूर्ण अस्त हैं, वक्री हैं या स्थिर (stationary) हैं तब ऐसे में जातक को

*नित्य अर्गलास्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

* देवी दुर्गा और भगवान नरसिंह का पूजन करना चाहिए।

*भगवान हनुमान और देवी दुर्गा के मंदिर में दान करना चाहिए।

*मंगलवार का व्रत करना चाहिए।

*21 मंगलवार लाल-वस्त्र का दान करना चाहिए।

*मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन लग्न में जन्म लेने वाले जातक लाल-मूंगा (Red coral) धारण कर रत्न-धारण का भी लाभ उठा सकते हैं।

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