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तिथि 01-04-2022

चंद्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। तिथियों का मान चंद्रमा और सूर्य के अंतरांशों पर से निकाला जाता है। सूर्य और चंद्रमा के भ्रमण में प्रतिदिन 12 अंशों का अंतर होता है, यही अंतरांश का मध्यम मान है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ शुक्लपक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियाँ कृष्ण पक्ष की होती हैं। ज्योतिष शास्त्र में तिथियों की गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती है।


तिथियों के स्वामी प्रतिपदा तिथि का स्वामी अग्नि, द्वितीया का ब्रम्हा, तृतीया की गौरी, चतुर्थी का गणेश, पंचमी का शेषनाग, षष्ठी का कार्तिकेय, सप्तमी का सूर्य, अष्टमी का शिव, नवमी की दुर्गा, दशमी का काल, एकादशी के विश्वदेव, द्वादशी का विष्णु, त्रयोदशी का काम, चतुर्दशी का शिव, पौर्णमासी का चंद्रमा और अमावस्या के पितर हैं।


तिथियों की संज्ञाएँ 1, 6, 11 नंदा तिथि ; 2, 7, 12 भद्रा तिथि ; 3, 8, 13 जया तिथि ; 4, 9, 14 रिक्ता तिथि और 5, 10, 15/30 पूर्णा तिथि कहलाती है।


मासशून्य तिथियाँ चैत्र में दोनों पक्षों की अष्टमी और नवमी, वैशाख में दोनों पक्षों की द्वादशी, ज्येष्ठ में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी, आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की षष्ठी और शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रावण में दोनों पक्षों की द्वितीया और तृतीया, भाद्रपद में दोनों पक्षों की प्रतिपदा और द्वितीया, अश्विन में दोनों पक्षों की दशमी और एकादशी, कार्तिक में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्लपक्ष की चतुर्दशी, मार्गशीर्ष में दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी, पौष में दोनों पक्षों की चतुर्थी और पंचमी, माघ में कृष्ण पक्ष की पंचमी, और शुक्लपक्ष की षष्ठी एवम फाल्गुन में कृष्णपक्ष की चतुर्थी और शुक्लपक्ष की तृतीया मासशून्य संज्ञक हैं। मासशून्य तिथियों में कार्य करने से सफलता प्राप्त नहीं होती।


सिद्धा तिथियाँ मंगलवार को 3, 8, 13 ; बुधवार को 2, 7, 12 ; बृहस्पतिवार को 5, 10, 15 ; शुक्रवार को 1, 6, 11 तिथियाँ सिद्धि देनेवाली सिद्धासंज्ञक हैं। इन तिथियों में किया गया कार्य सिद्धिप्रदायक होता है।


दग्धा, विष और हुताशन संज्ञक तिथियाँ रविवार को द्वादशी, सोमवार को एकादशी, मंगलवार को पंचमी, बुधवार को तृतीया, बृहस्पतिवार को षष्ठी, शुक्रवार को अष्टमी और शनिवार को नवमी दग्धा संज्ञक; रविवार को चतुर्थी, सोमवार को षष्ठी, मंगलवार को सप्तमी, बुधवार को द्वितीया, बृहस्पतिवार को अष्टमी, शुक्रवार को नवमी और शनिवार को सप्तमी विष संज्ञक एवम रविवार को द्वादशी, सोमवार को षष्ठी, मंगलवार को सप्तमी, बुधवार को अष्टमी, बृहस्पतिवार को नवमी, शुक्रवार को दशमी और शनिवार को एकादशी हुताशन संज्ञक हैं। नामानुसार इन तिथियों में काम करने से विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है।


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