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Kundali Matching for Marriage
" चंद्रकला नाड़ी " नामक ग्रंथ में लिखा है -- लग्नाधिपति छठे भाव में हो और छठे भाव का स्वामी पंचम भाव में हो, अष्टम भाव का स्वामी भी पंचम भाव में हो, तो ' पेट में बहुत रोग वाला जातक ' होता है।
लग्न से सप्तम भाव में शुक्र स्थित हो, शुक्र के साथ शनि की युति अथवा शुक्र पर शनि की दृष्टि हो तो कफ और गरम वायु के दोष से " विष्ठा तथा मूत्र " का कष्ट होता है।
इस दोष को दूर करने के लिए जातक को " रविवार का व्रत " करना चाहिए। बारह रविवारों को प्रति रविवार एक - एक रवि के नाम का पूजन करना चाहिए। रविवार को निराहार रहना पूर्व जन्म के पापों का नाश करता है।
असाध्य प्रमेह रोग, पित्त रोग, मूर्छा तथा वायु विकारों का भी यह नाश करता है।
रविवार का व्रत आरम्भ करने से पूर्व दैवज्ञ की भली प्रकार पूजा करें। लाल वस्त्र का दान करें। शरीर स्वस्थ होगा और कल्याण होगा।
विधिपूर्वक सूर्य की धातू - मूर्ति यथाशक्ति बनवाये, अर्थात अपनी संपत्ति के अनुसार खरीदे। उस मूर्ति की ध्यान - आसन द्वारा पूजा करके उसको दान में दे दे। सूर्य भगवान को इस मंत्र से अर्घ्य देवे -- " हे दिवाकर भगवान , आपको नमस्कार है। आप पाप और अज्ञान दोनों के नाशक हैं। आप त्रयोमय हैं। आप समस्त संसार की आत्मा हैं। आपको हम नतमस्तक होकर अर्घ्य अर्पण करते हैं, इसे स्वीकार कीजिये। "
इस प्रकार बारह रविवारों का किया हुआ व्रत अथवा पूर्ण तीन मास में आने वाले रविवारों में किया हुआ व्रत भगवान सूर्य को प्रसन्न करता है और सूर्यदेव प्रसाद रूप में शरीर की आरोग्यता प्रदान करते हैं, इसमें संदेह नहीं।