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जीवित्पुत्रिका ( जिउतिया ) व्रत 2022
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अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत होता है। जीवित्पुत्रिका ( जिउतिया ) व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान के दीर्घ आयु , आरोग्य और सुखी जीवन के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान के दीर्घ आयु - आरोग्य और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
विक्रम संवत के अश्विन माह में सातवें दिन नहाय - खाय के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। अगले दिन अर्थात अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को , जीवित्पुत्रिका दिवस पर , निर्जला उपवास किया जाता है। तीसरे दिन सूर्योदय के बाद नवमी तिथि को पारण के साथ व्रत का समापन होता है। इस व्रत में नोनी की साग और मड़ुआ का विशेष महत्व है।
जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि निर्णय ( व्रत कब करें ? )
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सप्तमी संयुता अष्टमी विचार
----------------------------------- " सप्तमीसंयुता अष्टमी नित्यं शोकसन्तापकारिणीम " अर्थात सप्तमी तिथि से युक्त अष्टमी तिथि नित्य शोक तथा संताप को करनेवाली होती है।
" वर्जनीया प्रयत्नेन मनुजै: शुभकांक्षीभि: " अर्थात सप्तमी मिश्रित अष्टमी को शुभ की इच्छा वाले मनुष्यों को प्रयत्न से त्यागना चाहिए।
" सप्तमी कलया यत्र परतश्चाष्टमी भवेत। तेन शल्यमिदं प्रोक्तं पुत्रपौत्र क्षयप्रदम ।। " अर्थात जहाँ पर कलामात्र भी सप्तमी से पर अष्टमी हो उसको शल्य कहा जाता है। जो पुत्र और पौत्र को क्षय करनेवाली है।
सप्तमी सहित अष्टमी तो - पुत्रों का नाश करती है। उत्पन्न हुए और न उत्पन्न हुओं का भी नाश करती है।
** अर्थात सप्तमी युक्त अष्टमी को जीवित्पुत्रिका ( जितिया ) व्रत न करें।
** N.B. --- " अष्टम्यामुदिते सूर्ये दिनान्ते नवमी भवेत, तत्र पूजनीया प्रयत्नत: " अर्थात अष्टमी तिथि में सूर्योदय के उदय होने पर तथा दिनान्त में नवमी तिथि हो वह प्रयत्न से पूजनीय होती है।
** इस वर्ष 17 सितंबर 2022 , शनिवार को दिन में अपराह्न 2 बजकर 56 मिनट के बाद से अष्टमी तिथि लग जा रही है। बावजूद इस दिन जीवित्पुत्रिका - व्रत का उपवास " नहीं शुरू करना है "।
18 सितंबर 2022, रविवार को सूर्योदय अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि में हो रहा है। यह अष्टमी तिथि शाम को 4 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। शाम 4 बजकर 40 मिनट से नवमी तिथि का प्रवेश हो जाएगा।
** अतः 18 सितंबर, रविवार को ही " जीवित्पुत्रिका व्रत का दिवा-रात्रि निर्जला उपवास करना है "।
** पारण कब करें ?
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अगले दिन 19 सितंबर , सोमवार को सूर्योदय के तुरंत बाद नवमी तिथि में पारण करें।
N.B. ** 18 सितंबर , रविवार को शाम 4 बजकर 39 मिनट के बाद नवमी तिथि शुरू हो जा रही है। बावजूद इसी दिन रविवार, 18 तारीख को ही दिवा - रात्रि निर्जला उपवास करना चाहिए। कोई संशय न रखें। यह निर्णय - सिन्धु नामक हिन्दू धर्म ग्रंथ कहता है।
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