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शनिग्रह के वक्री होने का प्रभाव 

ग्रहों का प्रतिगमन अर्थात वक्री होना स्पष्ट रूप से एक परिक्रमा-काल में कम से कम एक बार होता ही है। शनिग्रह का वक्री काल 140 दिन का होता है। 18 जून 2023 को शनिग्रह की मार्गी से वक्री चाल शुरू हो जाएगी। 

ग्रहों की वक्री अवस्था पर एक बात ध्यान देना है कि जब कोई ग्रह वक्री होता है तब आपके जीवन के उस विभाग या भाव या घर से संबंधित मामलों को प्रभावित करता है जिन पर कि आपकी जन्मकुण्डली में वह शासन करता है। या जिन भावों का  या घर का आपकी जन्मकुण्डली में वह स्वामी होता है, उन भावों से घर से जिन-जिन बातों का विचार किया जाता है उन सभी को वह वक्री ग्रह प्रभावित करता है। 

शनिग्रह जब वक्री होते हैं और आपकी जन्मकुण्डली में प्रतिकूल फलदायी हैं, तब आपकी आदतें, आपका व्यवहार, आपका नज़रिया, आपकी महत्वाकांक्षा आपके ambitions को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। आपके आत्मविश्वास में कमी आती है। 

जातक तत्व” नामक ज्योतिष ग्रन्थ कहता है कि अगर लग्न-कुण्डली के अनुसार शनि आपके लिए अशुभ फलदायी हैं तब शनिग्रह का वक्री होना परेशानी और हानि का कारक हो जाता है। 

सारावली” नामक ज्योतिष ग्रन्थ कहता है कि शनिग्रह के वक्री होने की स्थिति में परेशानियों का सामना करना पड़ता है और बेवजह का भटकाव होता है। 

विद्वान ज्योतिष एस. कन्नन का कहना है कि गोचर के दौरान शनिग्रह का वक्री होना वांछित परिणाम नहीं देता है। अगर जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह शुभफलदायी और योगकारक हैं तब भी गोचर के दौरान वक्री होने पर बाधा और चिन्ता के कारक होते हैं। और जब जन्मकुण्डली के अनुसार शनिग्रह बाधक और अशुभ फलदायी हैं तब गोचर के दौरान वक्री होने पर विशेष अर्थात कुछ ज्यादा ही परेशानी के कारक हो जाते हैं। 

शनिग्रह का कुम्भ राशि के गोचर में वक्री होने का प्रभाव 

महान ज्योतिष डॉ बी. भी. रमन ने अपनी पत्रिका ‘दी एस्ट्रोलॉजिकल मैगज़ीनमें एक जगह कहा है कि शनिग्रह का गोचर में वक्री होना परेशानियों का कारक होता है। आगे उन्होंने कहा है कि अगर आप शनि महादशा के प्रभाव में चल रहे हैं तब शनिग्रह कुम्भ राशि में अपने वक्री गोचर के समय अचानक और नाटकीय परिणाम देते हैं। 

 

अगर आप शनि महादशा के प्रभाव में चल रहे हैं और आपकी जन्मकुण्डली के अनुसार वह योगकारक ग्रह हैं, जैसा कि वह तुला और वृष लग्न के लिए होते हैं, तब शनिग्रह का गोचर में कुम्भ राशि में वक्री होना आपके लिए अनुकूल फलदायी ही है। यह कोई नुकसानदेह स्थिति नहीं है। परंतु अगर आप शनि महादशा के प्रभाव में चल रहे हैं और शनिग्रह आपकी जन्मकुण्डली के अनुसार प्रतिकूल फलदायी हैं, जैसा कि वह कर्क लग्न और सिंह लग्न वालों के लिए होते हैं, तब गोचर में कुम्भ राशि में शनिग्रह के वक्री होने पर उनके प्रतिकूल फल देने का प्रभाव और भी बढ़ जाता है।  

एक बात ध्यान रखना है कि शनिग्रह अपने कुम्भ राशि में वक्री गोचर के दौरान आपकी जन्मकुण्डली में जिन-जिन भावों के स्वामी हैं और उन भावों से जिन-जिन बातों-व्यक्तियों-गुणों का विचार किया जाता है, उन्हीं बातों-व्यक्तियों-गुणों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। 

एक और बात ध्यान रखना है कि अगर आप शनि महादशा के प्रभाव में चल रहे हैं, आपका जन्म किसी भी लग्न का हो, और शनिग्रह आपकी जन्मकुण्डली के तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें भाव स्थित हैं तब शनिग्रह अपने वक्री गोचर के समय बहुत प्रतिकूल फलदायी नहीं होते हैंकभी-कभार लाभकारी भी होते हैं। हाँ, उनके प्रभाव में कुछ असामान्यता या विकृति जरूर हो सकती है। 

शनिग्रह के गोचर के संदर्भ में कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि अगर आप शनि महादशा के प्रभाव में चल रहे हैं और आपकी जन्मकुण्डली के अनुसार प्रतिकूल फल देने वाले ग्रह हैं, जैसा कि वह कर्क और सिंह लग्न वालों के लिए होते हैं, और वह आपकी जन्मकुण्डली के आठवें या बारहवें भाव स्थित हैं, तब गोचर के दौरान वक्री होने पर आपके लिए वह शुभ फलदायी हो जाते हैं। वह इस सिद्धांत पर कि जिस प्रकार Negative-Negative मिलकर Positive हो जाता है, उसी प्रकार यह आपके लिए Positive अर्थात अनुकूल फलदायी हो जाता है। 

शनिग्रह का कुम्भ राशि में वक्री होना और आपका स्वास्थ्य 

मिथुन लग्न, सिंह लग्न, तुला लग्न, वृश्चिक लग्न और मकर लग्न लेने वाले जातकों के लिए शनिग्रह का कुम्भ राशि में वक्री होना आपके स्वास्थ्य के ख्याल से खराब नहीं कहा जाएगा। बल्कि शनिग्रह का कुम्भ राशि के गोचर में वक्री होना आपके स्वास्थ्य में सुधार ही लाएगा। 

लेकिन अगर आपका जन्म वृष लग्न, कर्क लग्न, कन्या लग्न, धनु लग्न, कुम्भ लग्न या मीन लग्न में हुआ है तब शनिग्रह का कुम्भ राशि के गोचर में वक्री होना आपके अच्छे स्वास्थ्य में बाधक होगा। आपकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को बढ़ाने वाला होगा