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नाड़ी दोष क्या है ?
नाड़ी वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। ग्रंथों में अनेक प्रकार की नाड़ियों का उल्लेख मिलता है। परंतु इनमें तीन नाड़ियों – ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का उल्लेख बार-बार मिलता है।
ईड़ा नाड़ी ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है। इसे चंद्र नाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम “ मूलाधार चक्र “ माना जाता है जो मेरुदंड के सबसे नीचे स्थित है। अतः इसे आद्य (आदि) नाड़ी भी कहा जा सकता है।
सुषुम्ना नाड़ी से श्वास, प्राणायाम और ध्यान प्रवाहित होती है। यह मानव शरीर -विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। जब ऊर्जा ‘ सुषुम्ना नाड़ी ‘ में प्रवेश करती है तभी से यौगिक जीवन शुरू होता है। इसे मध्य नाड़ी भी कहा जा सकता है।
पिंगला नाड़ी धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इसको सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है। इसे अन्त्य (अंत) नाड़ी भी कहा जा सकता है।
हमारे ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार भी नाड़ी तीन प्रकार की होती है। ये हैं – आद्य (आदि) नाड़ी , मध्य नाड़ी और अन्त्य (अंत) नाड़ी । प्रत्येक व्यक्ति की जन्मकुण्डली में चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष में उपस्थिति से उस व्यक्ति की तीनों नाड़ियों में से कौन सी नाड़ी मुख्य रूप से सक्रिय है या उसकी नाड़ी का पता चलता है।
ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र हैं। (अभिजीत को छोड़कर)। 9 नक्षत्रों की नाड़ी आदि है। 9 नक्षत्रों की नाड़ी मध्य है। 9 नक्षत्रों की नाड़ी अन्त्य है।
आद्य (आदि) नाड़ी – ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, अश्विनी नक्षत्रों की नाड़ी आदि है।
मध्य नाड़ी – मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, धनिष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों की नाड़ी मध्य है।
अन्त्य नाड़ी – स्वाति, विशाखा, कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, रेवती नक्षत्रों की नाड़ी अन्त्य है।
विवाह के लिए अष्टकूट मिलान में नाड़ी दोष को विशेष महत्व दिया गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनों का जन्म-नक्षत्र एक ही नाड़ी का होता है तब यह नाड़ी-दोष लगता है। अष्टकूट के सभी दोषों में नाड़ी-दोष को सबसे अशुभ माना जाता है। इस दोष के लगने से सर्वाधिक आठ (8) गुण-अंकों की हानि होती है। इस दोष के लगने पर विवाह की बात आगे बढ़ाने की इजाजत नहीं दी जाती है।
** Naadi matching ensures a long marital life and protection against dangers.
ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार यदि वर – कन्या दोनों की नाड़ी आद्य (आदि) हो और उनका आपस में विवाह हो जाता है तब वह वैवाहिक संबंध सुखमय नहीं होता है। अधिक दिनों तक कायम नहीं रहता है। किसी न किसी कारण दोनों का अलगाव हो जाता है।
यदि वर – कन्या दोनों की नाड़ी मध्य हो और उनका आपस में विवाह हो जाता है तब मृत्यु-योग बनता है। दोनों को तरह-तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है। वर, कन्या की शीघ्र मृत्यु होने का भी भय बना रहता है।
इसी प्रकार यदि वर-कन्या दोनों की नाड़ी अन्त्य होती है तब दोनों का आपस में विवाह होने पर दोनों का जीवन दुःखों से भरा होता है।
अनेक विद्वानों का यह मत है कि नाड़ी दोष विद्यमान होने से जातक की आर्थिक स्थिति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। संतान संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है। वर अथवा वधु में से किसी एक अथवा दोनों की शीघ्र मृत्यु हो सकती है। इसके अलावा और भी भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता है।
** When both the bride and the groom fall in the Aadya Naadi , the groom suffers. When they both have Antya Naadi , the bride suffers. When both have Madhya Naadi , the bride as well as groom suffers adverse effects , including death.
नाड़ी दोष का अपवाद ---
1.जब वर और कन्या दोनों की एक ही राशि होती है लेकिन नक्षत्र अलग-अलग होकर नाड़ी-दोष लग रहा है तब ऐसे में नाड़ी-दोष प्रभावी नहीं होता है।
2.जब वर और कन्या दोनों का नक्षत्र एक ही होता है लेकिन राशि अलग-अलग होकर नाड़ी-दोष लग रहा है तब ऐसे में भी नाड़ी-दोष प्रभावी नहीं होता है।
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