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Kundali Matching for Marriage
अश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तक पंद्रह दिनों का काल पितृपक्ष कहलाता है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों ( पूर्वजों ) को जल देते हैं एवम उनकी मृत्यु - तिथि पर पार्वण श्राद्ध करते हैं।
इस वर्ष यह पितृपक्ष 3 सितंबर 2020 दिन बृहस्पतिवार से शुरू हो रहा है और अमावस तिथि 17 सितंबर 2020 दिन बृहस्पतिवार को समाप्त होगा।
अपने मृत पितृगण** के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जानेवाले कर्म - विशेष को श्राद्ध कहते हैं।
**पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामह: ।
त्रयो ह्यश्रीमुखा ह्येते पितर: परिकीर्तिता ।।
महर्षि पराशर ने श्राद्ध का लक्षण इस प्रकार किया है ---
देशे काले च पात्रे च विधिना हविषा च यत ।
तिलैर्दभैंश्च मंत्रैश्च श्राद्धम स्याच्छरद्वया युतं ।।
" देश , काल तथा पात्र में हविष्यादि विधिद्वारा जो कर्म तिल, यव और दर्भ ( कुशा ) आदि से और मंत्रों से श्रद्धा पूर्वक किया जाय, उसे श्राद्ध कहते हैं। "
" श्रद्धया इदं श्राद्धम " अर्थात जो श्रद्धा से किया जाय वह श्राद्ध है।
प्रेत और पित्तर के निमित्त , उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वह श्राद्ध है।
पितृपक्ष के साथ पितरों का विशेष संबंध रहता है। अतः शास्त्रों में पितृपक्ष में श्राद्ध करने की विशेष महिमा लिखी गयी है। महर्षि जाबालि कहते हैं ---
" पुत्रणायूस्तथा आरोग्यम ऐश्वर्यमतुलं तथा ।
प्राप्नोति पंचमे कृत्वा श्राद्धम कामांश्च पुष्कलां ।।
पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य और अभिलक्षित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
जो भी व्यक्ति अपने पितरों को तिल मिश्रित यव अपनी अंजलि से प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है।
धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं -- पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वह सभी पूर्वज भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
पितृपक्ष और गया श्राद्ध
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" गया सर्वकालेषु पिण्डम दधाद्विपक्षणं "
गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो श्राद्ध का शास्त्रीय समय निश्चित है परंतु गया में सदैव पिण्डदान करने की अनुमति दी गयी है।
बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता और आदर से लिया जाता है। भारत के प्रमुख तीर्थस्थानों में गया का नाम आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से "गयाजी" बोला जाता है। गया स्थित विष्णुपद मंदिर में स्वयं भगवान विष्णु का चरण उपस्थित है। विष्णुचरण की पूजा करने के लिए लोग देश के कोने - कोने से आते हैं।
विष्णुपद मंदिर " फल्गु नदी " के तट पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि माता सीता एवं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने स्वयं इस स्थान पर पिता राजा दशरथ का पिण्डदान किया था। तब से यह मान्यता है कि इस स्थान पर आकर जो भी व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त पिण्ड दान करेगा उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उऋण हो जाएगा।