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ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव को दूर करने के लिए जो रत्न धारण करने की परिपाटी ज्योतिषशास्त्र में प्रचलित है, निरर्थक नहीं है। इसके पीछे भी विज्ञान का रहस्य छिपा है। प्रायः सभी लोग इस बात से परिचित हैं कि सौरमण्डलीय वातावरण का प्रभाव पाषाणों के रंग-रूप, आकार-प्रकार एवं पृथिवी, जल, अग्नि आदि तत्त्वों में से किसी तत्त्व की प्रधानता पर पड़ता है।
समगुण वाली रश्मियों के ग्रहों से पुष्ट और संचालित व्यक्ति को वैसे ही रश्मियों के वातावरण में उत्पन्न रत्न धारण कराया जाय तो वह उचित परिणाम देता है।
प्रतिकूल प्रभाव के मानव को विपरीत स्वभाव-उत्पन्न रत्न धारण करा दिया जाय तो वह उसके लिए विषम हो जाएगा।
स्वभाव - अनुरूप रश्मि प्रभाव परीक्षण के पश्चात सात्विक साम्य हो जाने पर रत्न सहज में लाभप्रद हो सकता है।